Chapter
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76
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34
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---|---|---|---|---|
2 | 1 | 26 | 1 | همی گفت با هر کسی رای خویش |
2 | 1 | 26 | 2 | جهان کرد یکسر پر آوای خویش |
2 | 1 | 27 | 1 | کیومرث زین خود کی آگاه بود |
2 | 1 | 27 | 2 | که تخت مهی را جز او شاه بود |
2 | 1 | 28 | 1 | یکایک بیامد خجسته سروش |
2 | 1 | 28 | 2 | به سان پری پلنگینه پوش |
2 | 1 | 29 | 1 | بگفتش ورا زین سخن در به در |
2 | 1 | 29 | 2 | که دشمن چه سازد همی با پدر |
2 | 1 | 30 | 1 | سخن چون به گوش سیامک رسید |
2 | 1 | 30 | 2 | ز کردار بدخواه دیو پلید |
2 | 1 | 31 | 1 | دل شاه بچّه بر آمد به جوش |
2 | 1 | 31 | 2 | سپاه انجمن کرد و بگشاد گوش |
2 | 1 | 32 | 1 | بپوشید تن را به چرم پلنگ |
2 | 1 | 32 | 2 | که جوشن نبود و نه آیین جنگ |
2 | 1 | 33 | 1 | پذیره شدش دیو را جنگجوی |
2 | 1 | 33 | 2 | سپه را چو روی اندر آمد به روی |
2 | 1 | 34 | 1 | سیامک بیامد برهنه تنا |
2 | 1 | 34 | 2 | بر آویخت با پور آهرمنا |
2 | 1 | 35 | 1 | بزد چنگ وارونه دیو سیاه |
2 | 1 | 35 | 2 | دوتا اندر آورد بالای شاه |
2 | 1 | 36 | 1 | فکند آن تن شاهزاده به خاک |
2 | 1 | 36 | 2 | به چنگال کردش کمرگاه چاک |
2 | 1 | 37 | 1 | سیامک به دست خروزان دیو |
2 | 1 | 37 | 2 | تبه گشت و ماند انجمن بیخدیو |
2 | 1 | 38 | 1 | چو آگه شد از مرگ فرزند شاه |
2 | 1 | 38 | 2 | ز تیمار گیتی بر او شد سیاه |
2 | 1 | 39 | 1 | فرود آمد از تخت ویله کنان |
2 | 1 | 39 | 2 | زنان بر سر و موی و رخ را کَنان |
2 | 1 | 40 | 1 | دو رخساره پر خون و دل سوگوار |
2 | 1 | 40 | 2 | دو دیده پر از نم چو ابر بهار |
2 | 1 | 41 | 1 | خروشی بر آمد ز لشکر به زار |
2 | 1 | 41 | 2 | کشیدند صف بر در شهریار |
2 | 1 | 42 | 1 | همه جامهها کرده پیروزه رنگ |
2 | 1 | 42 | 2 | دو چشم ابر خونین و رخ بادرنگ |
2 | 1 | 43 | 1 | دد و مرغ و نخچیر گشته گروه |
2 | 1 | 43 | 2 | برفتند ویله کنان سوی کوه |
2 | 1 | 44 | 1 | برفتند با سوگواری و درد |
2 | 1 | 44 | 2 | ز درگاه کی شاه برخاست گرد |
2 | 1 | 45 | 1 | نشستند سالی چنین سوگوار |
2 | 1 | 45 | 2 | پیام آمد از داور کردگار |
2 | 1 | 46 | 1 | درود آوریدش خجسته سروش |
2 | 1 | 46 | 2 | کز این بیش مخروش و باز آر هوش |
2 | 1 | 47 | 1 | سپه ساز و برکش به فرمان من |
2 | 1 | 47 | 2 | بر آور یکی گرد از آن انجمن |
2 | 1 | 48 | 1 | از آن بد کنش دیو روی زمین |
2 | 1 | 48 | 2 | بپرداز و پردخته کن دل ز کین |
2 | 1 | 49 | 1 | کی نامور سر سوی آسمان |
2 | 1 | 49 | 2 | بر آورد و بدخواست بر بدگمان |
2 | 1 | 50 | 1 | بر آن برترین نام یزدانش را |
2 | 1 | 50 | 2 | بخواند و بپالود مژگانش را |
2 | 1 | 51 | 1 | و زان پس به کین سیامک شتافت |
2 | 1 | 51 | 2 | شب و روز آرام و خفتن نیافت |
2 | 2 | 1 | 1 | خجسته سیامک یکی پور داشت |
2 | 2 | 1 | 2 | که نزد نیا جاه دستور داشت |
2 | 2 | 2 | 1 | گرانمایه را نام هوشنگ بود |
2 | 2 | 2 | 2 | تو گفتی همه هوش و فرهنگ بود |
2 | 2 | 3 | 1 | به نزد نیا یادگار پدر |
2 | 2 | 3 | 2 | نیا پروریده مر او را به بر |
2 | 2 | 4 | 1 | نیایش به جای پسر داشتی |
2 | 2 | 4 | 2 | جز او بر کسی چشم نگماشتی |
2 | 2 | 5 | 1 | چو بنهاد دل کینه و جنگ را |
2 | 2 | 5 | 2 | بخواند آن گرانمایه هوشنگ را |
2 | 2 | 6 | 1 | همه گفتنیها بدو بازگفت |
2 | 2 | 6 | 2 | همه رازها بر گشاد از نهفت |
2 | 2 | 7 | 1 | که من لشکری کرد خواهم همی |
2 | 2 | 7 | 2 | خروشی برآورد خواهم همی |
2 | 2 | 8 | 1 | تو را بود باید همی پیشرو |
2 | 2 | 8 | 2 | که من رفتنیام تو سالار نو |
2 | 2 | 9 | 1 | پری و پلنگ انجمن کرد و شیر |
2 | 2 | 9 | 2 | ز درّندگان گرگ و ببر دلیر |
2 | 2 | 10 | 1 | سپاهی دد و دام و مرغ و پری |
2 | 2 | 10 | 2 | سپهدار پرکین و کنداوری |
2 | 2 | 11 | 1 | پس پشت لشکر کیومرث شاه |
2 | 2 | 11 | 2 | نبیره به پیش اندرون با سپاه |
2 | 2 | 12 | 1 | بیامد سیه دیو با ترس و باک |
2 | 2 | 12 | 2 | همی بآسمان بر پراگند خاک |
2 | 2 | 13 | 1 | ز هرّای درّندگان چنگ دیو |
2 | 2 | 13 | 2 | شده سست از خشم کیهان خدیو |
2 | 2 | 14 | 1 | به هم برشکستند هر دو گروه |
2 | 2 | 14 | 2 | شدند از دد و دام دیوان ستوه |
2 | 2 | 15 | 1 | بیازید هوشنگ چون شیر چنگ |
2 | 2 | 15 | 2 | جهان کرد بر دیو نستوه تنگ |
2 | 2 | 16 | 1 | کشیدش سراپای یکسر دوال |
2 | 2 | 16 | 2 | سپهبد برید آن سر بیهمال |
2 | 2 | 17 | 1 | به پای اندر افگند و بسپرد خوار |
2 | 2 | 17 | 2 | دریده بر او چرم و برگشته کار |
2 | 2 | 18 | 1 | چو آمد مر آن کینه را خواستار |
2 | 2 | 18 | 2 | سرآمد کیومرث را روزگار |
2 | 2 | 19 | 1 | برفت و جهان مردری ماند ازوی |
2 | 2 | 19 | 2 | نگر تا که را نزد او آبروی |
2 | 2 | 20 | 1 | جهان فریبنده را گرد کرد |
2 | 2 | 20 | 2 | ره سود بنمود و خود مایه خْوَرد |
2 | 2 | 21 | 1 | جهان سر به سر چو فسانست و بس |
2 | 2 | 21 | 2 | نماند بد و نیک بر هیچکس |
3 | 1 | 1 | 1 | جهاندار هوشنگ با رای و داد |
3 | 1 | 1 | 2 | به جای نیا تاج بر سر نهاد |
3 | 1 | 2 | 1 | بگشت از برش چرخ سالی چهل |
3 | 1 | 2 | 2 | پر از هوش مغز و پر از رای دل |
3 | 1 | 3 | 1 | چو بنشست بر جایگاه مهی |
3 | 1 | 3 | 2 | چنین گفت بر تخت شاهنشهی |
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