Chapter
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76
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34
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---|---|---|---|---|
7 | 19 | 30 | 1 | به نیک و به بد هر چه شاید بدن |
7 | 19 | 30 | 2 | بباید همی داستان ها زدن |
7 | 19 | 31 | 1 | چو دژدار و چون قارن رزمجوی |
7 | 19 | 31 | 2 | یکایک به روی اندر آورده روی |
7 | 19 | 32 | 1 | یکی بدسگال و یکی ساده دل |
7 | 19 | 32 | 2 | سپهبد به هر چاره آماده دل |
7 | 19 | 33 | 1 | همی جست آن روز تا شب زمان |
7 | 19 | 33 | 2 | نه آگاه دژدار از آن بدگمان |
7 | 19 | 34 | 1 | به بیگانه بر مهر خویشی نهاد |
7 | 19 | 34 | 2 | بداد از گزافه سر و دژ به باد |
7 | 19 | 35 | 1 | چو شب روز شد قارن رزمخواه |
7 | 19 | 35 | 2 | درفشی برافراخت چون گرد ماه |
7 | 19 | 36 | 1 | خروشید و بنمود یک یک نشان |
7 | 19 | 36 | 2 | به شیروی و گردان گردن کشان |
7 | 19 | 37 | 1 | چو شیروی دید آن درفش یلی |
7 | 19 | 37 | 2 | به کین روی بنهاد با پردلی |
7 | 19 | 38 | 1 | در حصن بگرفت و اندر نهاد |
7 | 19 | 38 | 2 | سران را ز خون بر سر افسر نهاد |
7 | 19 | 39 | 1 | به یک دست قارن به یک دست شیر |
7 | 19 | 39 | 2 | به سر گرز و تیغ آتش و آب زیر |
7 | 19 | 40 | 1 | چو خورشید بر تیغ گنبد رسید |
7 | 19 | 40 | 2 | نه آیین دژ بد نه دژبان پدید |
7 | 19 | 41 | 1 | نه دژ بود گفتی نه کشتی بر آب |
7 | 19 | 41 | 2 | یکی دود دیدی سراندر سحاب |
7 | 19 | 42 | 1 | درخشیدن آتش و باد خاست |
7 | 19 | 42 | 2 | خروش سواران و فریاد خاست |
7 | 19 | 43 | 1 | چو خورشید تابان ز بالا بگشت |
7 | 19 | 43 | 2 | چه آن دژ نمود و چه آن پهن دشت |
7 | 19 | 44 | 1 | بکشتند از ایشان فزون از شمار |
7 | 19 | 44 | 2 | همی دود از آتش برآمد چو قار |
7 | 19 | 45 | 1 | همه روی دریا شده قیرگون |
7 | 19 | 45 | 2 | همه روی صحرا شده جوی خون |
7 | 20 | 1 | 1 | تهی شد ز کینه سر کینه دار |
7 | 20 | 1 | 2 | گریزان همی رفت سوی حصار |
7 | 20 | 2 | 1 | پس اندر سپاه منوچهر شاه |
7 | 20 | 2 | 2 | دمان و دنان برگرفتند راه |
7 | 20 | 3 | 1 | چو شد سلم تا پیش دریا کنار |
7 | 20 | 3 | 2 | ندید آنچه کشتی برآن رهگذار |
7 | 20 | 4 | 1 | چنان شد ز بس کشته و خسته دشت |
7 | 20 | 4 | 2 | که پوینده را راه دشوار گشت |
7 | 20 | 5 | 1 | پر از خشم و پر کینه سالار نو |
7 | 20 | 5 | 2 | نشست از بر چرمهٔ تیزرو |
7 | 20 | 6 | 1 | بیفگند بر گستوان و بتاخت |
7 | 20 | 6 | 2 | به گرد سپه چرمه اندر نشاخت |
7 | 20 | 7 | 1 | رسید آنگهی تنگ در شاه روم |
7 | 20 | 7 | 2 | خروشید کای مرد بیداد شوم |
7 | 20 | 8 | 1 | بکشتی برادر ز بهر کلاه |
7 | 20 | 8 | 2 | کله یافتی چند پویی براه |
7 | 20 | 9 | 1 | کنون تاجت آوردم ای شاه و تخت |
7 | 20 | 9 | 2 | به بار آمد آن خسروانی درخت |
7 | 20 | 10 | 1 | زتاج بزرگی گریزان مشو |
7 | 20 | 10 | 2 | فریدونت گاهی بیاراست نو |
7 | 20 | 11 | 1 | درختی که پروردی آمد به بار |
7 | 20 | 11 | 2 | بیابی هم اکنون برش در کنار |
7 | 20 | 12 | 1 | اگر بار خارست خود کشتهای |
7 | 20 | 12 | 2 | و گر پرنیانست خود رشتهای |
7 | 20 | 13 | 1 | همی تاخت اسپ اندرین گفتگوی |
7 | 20 | 13 | 2 | یکایک به تنگی رسید اندر اوی |
7 | 20 | 14 | 1 | یکی تیغ زد زود بر گردنش |
7 | 20 | 14 | 2 | بدو نیمه شد خسروانی تنش |
7 | 20 | 15 | 1 | بفرمود تا سرش برداشتند |
7 | 20 | 15 | 2 | به نیزه به ابر اندر افراشتند |
7 | 20 | 16 | 1 | بماندند لشکر شگفت اندر اوی |
7 | 20 | 16 | 2 | ازان زور و آن بازوی جنگجوی |
7 | 20 | 17 | 1 | همه لشکر سلم همچون رمه |
7 | 20 | 17 | 2 | که بپراگند روزگار دمه |
7 | 20 | 18 | 1 | برفتند یکسر گروها گروه |
7 | 20 | 18 | 2 | پراگنده در دشت و دریا و کوه |
7 | 20 | 19 | 1 | یکی پرخرد مرد پاکیزه مغز |
7 | 20 | 19 | 2 | که بودش زبان پر ز گفتار نغز |
7 | 20 | 20 | 1 | بگفتند تا زی منوچهر شاه |
7 | 20 | 20 | 2 | شود گرم و باشد زبان سپاه |
7 | 20 | 21 | 1 | بگوید که گفتند ما کهتریم |
7 | 20 | 21 | 2 | زمین جز به فرمان او نسپریم |
7 | 20 | 22 | 1 | گروهی خداوند بر چارپای |
7 | 20 | 22 | 2 | گروهی خداوند کشت و سرای |
7 | 20 | 23 | 1 | سپاهی بدین رزمگاه آمدیم |
7 | 20 | 23 | 2 | نه بر آرزو کینه خواه آمدیم |
7 | 20 | 24 | 1 | کنون سر به سر شاه را بندهایم |
7 | 20 | 24 | 2 | دل و جان به مهر وی آگندهایم |
7 | 20 | 25 | 1 | گرش رای جنگ است و خون ریختن |
7 | 20 | 25 | 2 | نداریم نیروی آویختن |
7 | 20 | 26 | 1 | سران یکسره پیش شاه آوریم |
7 | 20 | 26 | 2 | بر او سر بیگناه آوریم |
7 | 20 | 27 | 1 | براند هر آن کام کو را هواست |
7 | 20 | 27 | 2 | برین بیگنه جان ما پادشاست |
7 | 20 | 28 | 1 | بگفت این سخن مرد بسیار هوش |
7 | 20 | 28 | 2 | سپهدار خیره بدو دادگوش |
7 | 20 | 29 | 1 | چنین داد پاسخ که من کام خویش |
7 | 20 | 29 | 2 | به خاک افگنم برکشم نام خویش |
7 | 20 | 30 | 1 | هر آن چیز کان نز ره ایزدیست |
7 | 20 | 30 | 2 | از آهرمنی گر ز دست بدیست |
7 | 20 | 31 | 1 | سراسر ز دیدار من دور باد |
7 | 20 | 31 | 2 | بدی را تن دیو رنجور باد |
7 | 20 | 32 | 1 | شما گر همه کینهدار منید |
7 | 20 | 32 | 2 | وگر دوستدارید و یار منید |
7 | 20 | 33 | 1 | چو پیروزگر دادمان دستگاه |
7 | 20 | 33 | 2 | گنه کار پیدا شد از بیگناه |
7 | 20 | 34 | 1 | کنون روز دادست بیداد شد |
7 | 20 | 34 | 2 | سران را سر از کشتن آزاد شد |
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