Hindi
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Sanskrit
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क्योकि वह ही जलवर्षा के द्वारा औषधियों में गर्भरूप से बीजो को धारण करते है।
यतो हि स जलवर्षकः ओषधीषु गर्भरूपेण बीजानि धारयति ।
तैत्तिरीय संहिता तैत्तरीय संहिता का प्रचार देश के दक्षिण भारत में है।
तैत्तिरीयसंहिता तैत्तिरीयसंहितायाः प्रसारदेशः दक्षिणभारतेऽस्ति।
और उसका विग्रह होता है-उक्‌ इत्‌ यस्य सः उगित्‌, तस्य उगितः।
तस्य च विग्रहः भवति- उक्‌ इत्‌ यस्य सः उगित्‌, तस्य उगितः।
शिक्षा शास्त्र का इतिहास बहुत प्राचीन है।
शिक्षाशास्त्रस्य इतिहासः पुरातनतरः।
और भी आपकी भुजाओं को नमस्कार, आपके धनुष को भी नमस्कार।
उतापि च ते तवोभाभ्यां बाहुभ्यां नमः तव धन्वने धनुषेऽपि नमोस्तु।
दर्शन में प्रवेश के लिए सामर्थ्य दर्शन में कौन-कौन से विषय सम्मिलित हैं इसका सामान्य ज्ञान।
दर्शने प्रवेशस्य सामर्थ्यम्‌ दर्शने के विषया अन्तर्भवन्ति इति सामान्यज्ञानं भवेत्‌।
कर्म के द्वारा ही कर्म का नाश किया जाता है।
कर्मणा कर्मनाशः क्रियते।
उत्तरम्‌ इसका प्रलय के बाद यह अर्थ है।
उत्तरम्‌ इत्यस्य उपरि इत्यर्थः।
क्योंकि नीचे नहीं है अत: ऊपर ही अवस्थ समझना चाहिए।
यथाधो न पतति तथोपरि अवस्थापितमित्यर्थः।
1.4 “प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम्‌'' सूत्रार्थ-समासविधायकशास्त्र में प्रथमान्त बोधित पद में उपसर्जन संज्ञा होती है।
१.४ "प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम्‌" सूत्रार्थः - समासविधायकशास्त्रे यत्‌ प्रथमान्तं तद्भोध्यम्‌ उपसर्जनसंज्ञं भवति।
जिस प्रजापति के आधार पर सूर्य उदय प्राप्तकर प्रकाशित होता है।
यस्मिन्नाधारभूते प्रजापतौ सूरः सूर्यः उदितः उदयं प्राप्तः सन्‌ विभाति प्रकाशते।
3. दीया- दी-धातु से लोट मध्यमपुरुष एकवचन में वैदिक रूप है।
३. दीया - दी - धातोः लोटि मध्यमपुरुषैकवचने वैदिकं रूपम्‌।
यहाँ नपुंसक से पञ्चमी एक वचनान्त का और अन्यतरस्य का विकल्प अर्थक अव्ययपद है।
तत्र नपुंसकाद्‌ इति पञ्चम्येकवचनान्तम्‌ अन्यतरस्याम्‌ इति च विकल्पार्थकम्‌ अव्ययपदम्‌।
दूरङ्गमम्‌ - दूरं गच्छतीति विग्रह में दूरपूर्वकगम्‌-धातु से खश्प्रत्यय करने पर दूरङ्गमम्‌ रूप बनता है।
दूरङ्गमम्‌ - दूरं गच्छतीति विग्रहे दूरपूर्वकगम्‌ - धातोः खश्प्रत्यये दूरङ्गमम्‌ इति रूपम्‌।
बाईसवें अध्याय से आरम्भ करके पच्चीसवें अध्याय तक अश्वमेध यज्ञ के विशिष्ट मन्त्रों का निर्देश है।
द्वाविंशत्यध्यायाद्‌ आरभ्य पञ्चविंशत्यध्यायपर्यम्तम्‌ अश्वमेधयज्ञस्य विशिष्टमन्त्राणां निर्देशोऽस्त।
अव्ययीभावसमास के अधिकार बोधक सूत्र हैं “ अव्ययीभावः”। इसके बाद “अव्ययं विभक्ति समीप-समृद्धि-व्यृद्ध्यर्थाभावाऽत्ययाऽसम्प्रति-शब्दप्रादुर्भाव पश्चात्‌-यथाऽऽनुपूर्व्य- यौगपद्य-सादृश्य-सम्पत्ति-साकल्यान्तवचनेषु '' इस सूत्र का अव्ययीभाव समास संज्ञक का व्याख्यान अवसर पर बहूनि अव्ययीभाव कार्य विधायक सूत्रों की व्याख्या की गई।
अव्ययीभावसमासस्य अधिकारं बोधयति "अव्ययीभावः" इति सूत्रम्‌। ततः "अव्ययं विभक्ति- समीप-समृद्धि-व्यृद्ध्यर्थाभावाऽत्ययाऽसम्प्रति-शब्दप्रादुर्भाव- पश्चात् -यथाऽऽनुपूर्व्य-यौगपद्य-सादृश्य- सम्पत्ति-साकल्याऽन्तवचनेषु" इति सूत्रस्य अव्ययीभावसमाससंज्ञकस्य व्याख्यानावसरे बहूनि अव्ययीभावकार्यविधायकानि सूत्राणि व्याख्यातानि।
यजमान किस प्रकार का धन प्राप्त करता है?
यजमानः कीदृशं रयिं प्राप्नोति?
पुण्य संस्कार से अनुरजि्‌जित भूतपञ्च व्याप्त हुए।
पुण्यसंस्कारानुरञ्जितभूतपञ्चकपरिवेष्टित इत्यर्थः।
बंहिष्ठम्‌ - बहुलशब्द से इष्ठन्प्रत्यय करने पर बहुलस्थान में बंहादेशे द्वितीया एकवचन में बंहिष्ठम्‌ रूप बना।
बंहिष्ठम्‌- बहुलशब्दात्‌ इष्ठन्प्रत्यये बहुलस्थाने बंहादेशे द्वितीयैकवचने बंहिष्ठम्‌ इति रूपम्‌।
तब फिर उसे पकड़कर के माता उसे अपने पास में ले आती है।
तदा पुनः माता तम्‌ गृहीत्वा स्वसमीपम्‌ आनयति।
2. माण्डुक्योपनिषद्‌ में विद्यमान महावाक्य क्या है?
२. माण्डूक्योपनिषदि विद्यमानं महावाक्यं किम्‌?
संस्कृत भाषा में अत्यन्त प्राचीन साहित्य प्राप्त होता है।
संस्कृतभाषायाम्‌ अति प्राचीनं साहित्यं लभ्यते
तब शरीर अत्यन्त दुर्बल होता है।
अत्यन्तं दुर्बलं भवति।
उनको विजय नही बनाते है।
तं नमयन्तीत्यर्थः ।
समृद्धि अर्थ में अव्ययीभाव समास का उदाहरण होता है सुमद्रम्‌।
समृद्ध्यर्थ अव्ययीभावसमासस्योदाहरणं भवति सुमद्रम्‌ इति।
अतः प्रकृत सूत्र से आगच्छ इस लोट्‌ अन्त तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता है।
अतः प्रकृतसूत्रेण आगच्छ इति लोडन्तं तिङन्तम्‌ अनुदात्तं न भवति।
किन्तु उत्तम पुरुष नहीं है।
किञ्च उत्तमपुरुषः नास्ति।
न गोश्वन्साववर्णराडङक्रुङकृद्भ्यः इस सूत्र की व्याख्या कोजिए।
न गोश्वन्साववर्णराडङ्क्रुङकृद्भ्यः इति सूत्रं व्याख्यात।
दिवि ईयते इस स्थिति में “एक: पूर्वपरयो:' इस अधिकार में पढ़ा हुआ ' अकः सवर्णे दीर्घः' इस सूत्र से पूर्व पर इकार ईकार के स्थान ईकार रूप सवर्ण दीर्घ एकादेश होने पर दिवीयते यह रूप सिद्ध होता है।
दिवि ईयते इति स्थिते 'एकः पूर्वपरयोः' इत्यधिकारे पठितेन 'अकः सवर्णे दीर्घः' इति सूत्रेण पूर्वपरयोः इकारेकारयोः स्थाने ईकाररूपसवर्णदीर्घेकादेशे दिवीयते इति रूपं सिध्यति।
काम्यकर्मो का त्याग मुमुक्षुओं के द्वारा करना चाहिए।
काम्यकर्मणां त्यागः कर्तव्यः मुमुक्षुणा ।
यह सब चैतन्यस्वरूप ब्रह्म ही होता है।
इदं सर्वं चैतन्यस्वरूपं ब्रह्म एव।
(क) श्रवण (ख) मनन (ग) निदिध्यासन (घ) निष्कामकर्मयोग 7 चित्त विक्षेप का शामक क्या होता है?
(क) श्रवणम्‌ (ख) मननम्‌ (ग) निदिध्यासनम्‌ (घ) निष्कामकर्मयोगः 7. चित्तविक्षेपस्य शामकं किम्‌।
जैसे:- राजपुरुषः इसमें समन्वय प्रस्तुत किया जा रहा है।
यथा राजपुरुषः इत्यादौ समन्वयः प्रस्तूयते।
मोक्ष भी नहीं है।
मोक्षः अपि नास्ति।
तिलु स्निग्धा भूमि है जिसकी वह क्षेत्र तिल्विल देवयजन का कहलाता है।
तिलुः स्निग्धा भूमिर्यस्य तत्‌ क्षेत्रं तिल्विलं देवयजनम्‌ इति कथ्यते।
यज्ञ को आवश्यकता को अनुभव करके उदात्त द्रष्टा महामुनि व्यास ने अपने चार शिष्यों को वेद पढाया।
यज्ञस्य आवश्यकताम्‌ अनुभूय उदात्तदृष्ट्या महामुनिः व्यासः स्वचतुरान्‌ शिष्यान्‌ वेदम्‌ अध्यापितवान्‌।
धातोः इस सूत्र से धातु अन्त उदात्त है।
धातोः इति सूत्रेण धातोः अन्तः उदात्तः भवति।
इस स्थिति में यदि अन्तकाल में भी स्थित हो जाय, तो निर्वाण (शान्त) ब्रह्मकी प्राप्ति हो जाती है।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्म निर्वाणमृच्छति" ॥
उदाहरण- अङ्ग कुरु यह इस सूत्र का एक उदाहरण है।
उदाहरणम्‌- अङ्ग कुरु इति सूत्रस्य अस्य एकमुदाहरणम्‌।
गायों की संख्या बढाओ।
गाः पिन्वतम्‌ गवाश्वादीन्‌ वर्धयतम्‌।
वायुगोपा: - वायुः गोपा (रक्षिता) जिनकी उनको वायुगोपाः कहते है।
वायुगोपाः - वायुः गोपाः (रक्षिताः) येषां ते वायुगोपाः।
उसको ' अनुदात्तं पदमेकवर्जम्‌' इस सूत्र से धातु के (अगि-इसके) अकार का अनुदात्त स्वर है प्रत्यय का नहीं है।
तेन 'अनुदात्तं पदमेकवर्जम्‌' इति सूत्रेण धातोः (अगि-इत्यस्य) अकारस्य अनुदात्तस्वरः न तु प्रत्ययस्य इति।
गङ्गा तथा घोष में आधार तथा आधेय भाव ही है।
गङ्गाघोषयोः आधाराधेयभावो विद्यते।
दर्शन के प्रयोग का सामर्थ्य दर्शन के स्पष्ट ज्ञान को प्राप्त कर अपने जीवन में उसके प्रयोग को करके कृतकृत्य होगा।
दर्शनप्रयोगस्य सामर्थ्यम्‌ दर्शनस्य स्पष्टं ज्ञानं प्राप्य स्वस्य जीवने तस्य प्रयोगं कृत्वा कृतकृत्यो भविष्यति।