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Sleeping
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{ | |
"title": "१. पठमपण्णासकं", | |
"book_name": "(२८) ८. रागपेय्यालं", | |
"chapter": "१. अनुबुद्धसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"‘‘सीलं", | |
"अनुबुद्धा इमे धम्मा, गोतमेन यसस्सिना॥", | |
"‘‘इति बुद्धो अभिञ्ञाय, धम्ममक्खासि भिक्खुनं।", | |
"दुक्खस्सन्तकरो सत्था, चक्खुमा परिनिब्बुतो’’ति॥ पठमं।", | |
"‘‘चुता पतन्ति पतिता, गिद्धा च पुनरागता।", | |
"कतं किच्चं रतं रम्मं, सुखेनान्वागतं सुख’’न्ति॥ दुतियं।", | |
"तं वा निन्दति यो पसंसियो।", | |
"विचिनाति मुखेन सो कलिं,", | |
"कलिना तेन सुखं न विन्दति॥", | |
"यो अक्खेसु धनपराजयो।", | |
"सब्बस्सापि सहापि अत्तना,", | |
"अयमेव महन्ततरो कलि।", | |
"यो सुगतेसु मनं पदोसये॥", | |
"‘‘सतं", | |
"छत्तिंसती पञ्च च अब्बुदानि।", | |
"यमरियगरही", | |
"वाचं मनञ्च पणिधाय पापक’’न्ति॥ ततियं।", | |
"‘‘मातरि", | |
"तथागते वा सम्बुद्धे, अथ वा तस्स सावके।", | |
"बहुञ्च", | |
"‘‘ताय नं अधम्मचरियाय", | |
"इधेव नं गरहन्ति, पेच्चापायञ्च गच्छति॥", | |
"‘‘मातरि पितरि चापि, यो सम्मा पटिपज्जति।", | |
"तथागते वा सम्बुद्धे, अथ वा तस्स सावके।", | |
"बहुञ्च सो पसवति, पुञ्ञं एतादिसो", | |
"‘‘ताय नं धम्मचरियाय, मातापितूसु पण्डिता।", | |
"इधेव", | |
"‘‘ये केचि कामेसु असञ्ञता जना,", | |
"अवीतरागा इध कामभोगिनो।", | |
"पुनप्पुनं जातिजरूपगामि ते", | |
"तण्हाधिपन्ना अनुसोतगामिनो॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"कामे च पापे च असेवमानो।", | |
"सहापि दुक्खेन जहेय्य कामे,", | |
"पटिसोतगामीति तमाहु पुग्गलं॥", | |
"‘‘यो वे किलेसानि पहाय पञ्च,", | |
"परिपुण्णसेखो अपरिहानधम्मो।", | |
"चेतोवसिप्पत्तो समाहितिन्द्रियो,", | |
"स वे ठितत्तोति नरो पवुच्चति॥", | |
"‘‘परोपरा", | |
"विधूपिता अत्थगता न सन्ति।", | |
"स वे मुनि", | |
"लोकन्तगू पारगतोति वुच्चती’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘अप्पस्सुतोपि चे होति, सीलेसु असमाहितो।", | |
"उभयेन नं गरहन्ति, सीलतो च सुतेन च॥", | |
"‘‘अप्पस्सुतोपि चे होति, सीलेसु सुसमाहितो।", | |
"सीलतो नं पसंसन्ति, तस्स सम्पज्जते सुतं॥", | |
"‘‘बहुस्सुतोपि", | |
"सीलतो नं गरहन्ति, नास्स सम्पज्जते सुतं॥", | |
"‘‘बहुस्सुतोपि", | |
"उभयेन नं पसंसन्ति, सीलतो च सुतेन च॥", | |
"‘‘बहुस्सुतं", | |
"नेक्खं जम्बोनदस्सेव, को तं निन्दितुमरहति।", | |
"देवापि नं पसंसन्ति, ब्रह्मुनापि पसंसितो’’ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘यो होति वियत्तो", | |
"बहुस्सुतो धम्मधरो च होति।", | |
"धम्मस्स होति अनुधम्मचारी,", | |
"स तादिसो वुच्चति सङ्घसोभनो", | |
"‘‘भिक्खु च सीलसम्पन्नो, भिक्खुनी च बहुस्सुता।", | |
"उपासको च यो सद्धो, या च सद्धा उपासिका।", | |
"एते खो सङ्घं सोभेन्ति, एते हि सङ्घसोभना’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘ये", | |
"यं", | |
"तथागतं पत्वा न ते भवन्ति,", | |
"विसारदं वादपथातिवत्तं", | |
"‘‘यो धम्मचक्कं अभिभुय्य केवली", | |
"पवत्तयी सब्बभूतानुकम्पी।", | |
"तं", | |
"सत्ता नमस्सन्ति भवस्स पारगु’’न्ति॥ अट्ठमं।", | |
"‘‘तण्हा दुतियो पुरिसो, दीघमद्धान संसरं।", | |
"इत्थभावञ्ञथाभावं, संसारं नातिवत्तति॥", | |
"‘‘एवमादीनवं ञत्वा, तण्हं दुक्खस्स सम्भवं।", | |
"वीततण्हो अनादानो, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति", | |
"‘‘कामयोगेन", | |
"दिट्ठियोगेन संयुत्ता, अविज्जाय पुरक्खता॥", | |
"‘‘सत्ता गच्छन्ति संसारं, जातिमरणगामिनो।", | |
"ये च कामे परिञ्ञाय, भवयोगञ्च सब्बसो॥", | |
"‘‘दिट्ठियोगं", | |
"सब्बयोगविसंयुत्ता, ते वे योगातिगा मुनी’’ति॥ दसमं।", | |
"अनुबुद्धं पपतितं द्वे, खता अनुसोतपञ्चमं।", | |
"अप्पस्सुतो", | |
"‘‘चरं वा यदि वा तिट्ठं, निसिन्नो उद वा सयं।", | |
"यो वितक्कं वितक्केति, पापकं गेहनिस्सितं॥", | |
"‘‘कुम्मग्गप्पटिपन्नो सो, मोहनेय्येसु मुच्छितो।", | |
"अभब्बो तादिसो भिक्खु, फुट्ठुं सम्बोधिमुत्तमं॥", | |
"‘‘यो च चरं वा तिट्ठं वा, निसिन्नो उद वा सयं।", | |
"वितक्कं समयित्वान, वितक्कूपसमे रतो।", | |
"भब्बो सो तादिसो भिक्खु, फुट्ठुं सम्बोधिमुत्तम’’न्ति॥ पठमं।", | |
"‘‘यतं", | |
"यतं", | |
"‘‘उद्धं", | |
"समवेक्खिता च धम्मानं, खन्धानं उदयब्बयं॥", | |
"‘‘चेतोसमथसामीचिं, सिक्खमानं सदा सतं।", | |
"सततं पहितत्तोति, आहु भिक्खुं तथाविध’’न्ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘सम्मप्पधाना मारधेय्याभिभूता,", | |
"ते असिता जातिमरणभयस्स पारगू।", | |
"ते तुसिता जेत्वा मारं सवाहिनिं", | |
"सब्बं नमुचिबलं उपातिवत्ता ते सुखिता’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘संवरो च पहानञ्च, भावना अनुरक्खणा।", | |
"एते", | |
"येहि भिक्खु इधातापी, खयं दुक्खस्स पापुणे’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘राहुग्गं अत्तभावीनं, मन्धाता कामभोगिनं।", | |
"मारो आधिपतेय्यानं, इद्धिया यससा जलं॥", | |
"‘‘उद्धं तिरियं अपाचीनं, यावता जगतो गति।", | |
"सदेवकस्स लोकस्स, बुद्धो अग्गो पवुच्चती’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘रूपसोखुम्मतं", | |
"सञ्ञा यतो समुदेति, अत्थं गच्छति यत्थ च।", | |
"सङ्खारे परतो ञत्वा, दुक्खतो नो च अत्ततो॥", | |
"‘‘स वे सम्मद्दसो भिक्खु, सन्तो सन्तिपदे रतो।", | |
"धारेति अन्तिमं देहं, जेत्वा मारं सवाहिनि’’न्ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘छन्दा दोसा भया मोहा, यो धम्मं अतिवत्तति।", | |
"निहीयति तस्स यसो, काळपक्खेव चन्दिमा’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘छन्दा दोसा भया मोहा, यो धम्मं नातिवत्तति।", | |
"आपूरति तस्स यसो, सुक्कपक्खेव चन्दिमा’’ति॥ अट्ठमं।", | |
"‘‘छन्दा दोसा भया मोहा, यो धम्मं अतिवत्तति।", | |
"निहीयति तस्स यसो, काळपक्खेव चन्दिमा॥", | |
"‘‘छन्दा दोसा भया मोहा, यो धम्मं नातिवत्तति।", | |
"आपूरति तस्स यसो, सुक्कपक्खेव चन्दिमा’’ति॥ नवमं।", | |
"‘‘ये केचि कामेसु असञ्ञता जना,", | |
"अधम्मिका होन्ति अधम्मगारवा।", | |
"छन्दा दोसा मोहा च भया गामिनो", | |
"परिसाकसटो", | |
"‘‘एवञ्हि", | |
"तस्मा हि ते सप्पुरिसा पसंसिया।", | |
"धम्मे ठिता ये न करोन्ति पापकं,", | |
"न छन्दा न दोसा न मोहा न भया च गामिनो", | |
"‘‘परिसाय मण्डो च पनेस वुच्चति,", | |
"एवञ्हि वुत्तं समणेन जानता’’ति॥ दसमं।", | |
"चरं सीलं पधानानि, संवरं पञ्ञत्ति पञ्चमं।", | |
"सोखुम्मं तयो अगती, भत्तुद्देसेन ते दसाति॥", | |
"‘‘ये च अतीता", | |
"यो चेतरहि सम्बुद्धो, बहूनं", | |
"‘‘सब्बे सद्धम्मगरुनो, विहंसु", | |
"अथोपि विहरिस्सन्ति, एसा बुद्धान धम्मता॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"सद्धम्मो गरुकातब्बो, सरं बुद्धान सासन’’न्ति॥", | |
"‘‘यो उद्धतेन चित्तेन, सम्फञ्च बहु भासति।", | |
"असमाहितसङ्कप्पो, असद्धम्मरतो मगो।", | |
"आरा सो थावरेय्यम्हा, पापदिट्ठि अनादरो॥", | |
"‘‘यो च सीलेन सम्पन्नो, सुतवा पटिभानवा।", | |
"सञ्ञतो धीरो धम्मेसु", | |
"‘‘पारगू", | |
"पहीनजातिमरणो, ब्रह्मचरियस्स केवली॥", | |
"‘‘तमहं वदामि थेरोति, यस्स नो सन्ति आसवा।", | |
"आसवानं खया भिक्खु, सो थेरोति पवुच्चती’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘सब्बं लोकं अभिञ्ञाय, सब्बं लोके यथातथं।", | |
"सब्बं लोकं", | |
"‘‘स वे सब्बाभिभू धीरो, सब्बगन्थप्पमोचनो।", | |
"फुट्ठ’स्स परमा सन्ति, निब्बानं अकुतोभयं॥", | |
"‘‘एस", | |
"सब्बकम्मक्खयं पत्तो, विमुत्तो उपधिसङ्खये॥", | |
"‘‘एस सो भगवा बुद्धो, एस सीहो अनुत्तरो।", | |
"सदेवकस्स लोकस्स, ब्रह्मचक्कं पवत्तयी॥", | |
"‘‘इति देवा मनुस्सा च, ये बुद्धं सरणं गता।", | |
"सङ्गम्म तं नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘‘दन्तो", | |
"मुत्तो मोचयतं अग्गो, तिण्णो तारयतं वरो॥", | |
"‘‘इति हेतं नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं।", | |
"सदेवकस्मिं लोकस्मिं, नत्थि ते", | |
"‘‘यं", | |
"अज्झोसितं सच्चमुतं परेसं।", | |
"न तेसु तादी सयसंवुतेसु,", | |
"सच्चं मुसा वापि परं दहेय्य॥", | |
"‘‘एतञ्च सल्लं पटिकच्च", | |
"अज्झोसिता यत्थ पजा विसत्ता।", | |
"जानामि", | |
"अज्झोसितं नत्थि तथागतान’’न्ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘संवरत्थं पहानत्थं, ब्रह्मचरियं अनीतिहं।", | |
"अदेसयि सो भगवा, निब्बानोगधगामिनं।", | |
"एस मग्गो महन्तेहि", | |
"‘‘ये च तं पटिपज्जन्ति, यथा बुद्धेन देसितं।", | |
"दुक्खस्सन्तं करिस्सन्ति, सत्थुसासनकारिनो’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"न ते धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते॥", | |
"‘‘निक्कुहा निल्लपा धीरा, अत्थद्धा सुसमाहिता।", | |
"ते वे धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते’’ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘अनवज्जेन तुट्ठस्स, अप्पेन सुलभेन च।", | |
"न", | |
"विघातो होति चित्तस्स, दिसा नप्पटिहञ्ञति॥", | |
"‘‘ये चस्स धम्मा अक्खाता, सामञ्ञस्सानुलोमिका।", | |
"अधिग्गहिता तुट्ठस्स, अप्पमत्तस्स सिक्खतो’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘नारति", | |
"धीरोव अरतिं सहति, धीरो हि अरतिस्सहो॥", | |
"‘‘सब्बकम्मविहायीनं", | |
"नेक्खं जम्बोनदस्सेव, को तं निन्दितुमरहति।", | |
"देवापि नं पसंसन्ति, ब्रह्मुनापि पसंसितो’’ति॥ अट्ठमं।", | |
"‘‘अनभिज्झालु", | |
"सतो एकग्गचित्तस्स", | |
"‘‘अब्यापन्नो सदा सतो, अज्झत्तं सुसमाहितो।", | |
"अभिज्झाविनये सिक्खं, अप्पमत्तोति वुच्चती’’ति॥ दसमं।", | |
"द्वे उरुवेला लोको काळको", | |
"कुहं सन्तुट्ठि वंसो च, धम्मपदं परिब्बाजकेन चाति॥", | |
"‘‘पतिरूपे", | |
"सम्मापणिधिसम्पन्नो, पुब्बे पुञ्ञकतो नरो।", | |
"धञ्ञं धनं यसो कित्ति, सुखञ्चेतंधिवत्तती’’ति॥ पठमं।", | |
"‘‘दानञ्च पेय्यवज्जञ्च", | |
"समानत्तता च धम्मेसु, तत्थ तत्थ यथारहं।", | |
"एते खो सङ्गहा लोके, रथस्साणीव यायतो॥", | |
"‘‘एते च सङ्गहा नास्सु, न माता पुत्तकारणा।", | |
"लभेथ मानं पूजं वा, पिता वा पुत्तकारणा॥", | |
"‘‘यस्मा", | |
"तस्मा महत्तं पप्पोन्ति, पासंसा च भवन्ति ते’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘यदा", | |
"सदेवकस्स लोकस्स, सत्था अप्पटिपुग्गलो॥", | |
"‘‘सक्कायञ्च", | |
"अरियञ्चट्ठङ्गिकं मग्गं, दुक्खूपसमगामिनं॥", | |
"‘‘येपि दीघायुका देवा, वण्णवन्तो यसस्सिनो।", | |
"भीता सन्तासमापादुं, सीहस्सेवि’तरेमिगा॥", | |
"‘‘अवीतिवत्ता सक्कायं, अनिच्चा किर भो मयं।", | |
"सुत्वा अरहतो वाक्यं, विप्पमुत्तस्स तादिनो’’ति", | |
"‘‘अग्गतो वे पसन्नानं, अग्गं धम्मं विजानतं।", | |
"अग्गे बुद्धे पसन्नानं, दक्खिणेय्ये अनुत्तरे॥", | |
"‘‘अग्गे धम्मे पसन्नानं, विरागूपसमे सुखे।", | |
"अग्गे सङ्घे पसन्नानं, पुञ्ञक्खेत्ते अनुत्तरे॥", | |
"‘‘अग्गस्मिं दानं ददतं, अग्गं पुञ्ञं पवड्ढति।", | |
"अग्गं आयु च वण्णो च, यसो कित्ति सुखं बलं॥", | |
"‘‘अग्गस्स दाता मेधावी, अग्गधम्मसमाहितो।", | |
"देवभूतो मनुस्सो वा, अग्गप्पत्तो पमोदती’’ति", | |
"‘‘यो वेदि सब्बसत्तानं, मच्चुपासप्पमोचनं।", | |
"हितं देवमनुस्सानं, ञायं धम्मं पकासयि।", | |
"यं वे दिस्वा च सुत्वा च, पसीदन्ति बहू जना", | |
"‘‘मग्गामग्गस्स कुसलो, कतकिच्चो अनासवो।", | |
"बुद्धो अन्तिमसारीरो", | |
"‘‘येन", | |
"यक्खत्तं येन गच्छेय्यं, मनुस्सत्तञ्च अब्बजे।", | |
"ते मय्हं, आसवा खीणा, विद्धस्ता विनळीकता॥", | |
"‘‘पुण्डरीकं", | |
"नुपलिप्पामि", | |
"‘‘सीले पतिट्ठितो भिक्खु, इन्द्रियेसु च संवुतो।", | |
"भोजनम्हि च मत्तञ्ञू, जागरियं अनुयुञ्जति॥", | |
"‘‘एवं विहारी आतापी, अहोरत्तमतन्दितो।", | |
"भावयं कुसलं धम्मं, योगक्खेमस्स पत्तिया॥", | |
"‘‘अप्पमादरतो भिक्खु, पमादे भयदस्सि वा", | |
"अभब्बो परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके’’ति॥ सत्तमं।", | |
"इति सच्चपरामासो, दिट्ठिट्ठाना समुस्सया॥", | |
"एसना पटिनिस्सट्ठा, दिट्ठिट्ठाना समूहता॥", | |
"‘‘स वे सन्तो सतो भिक्खु, पस्सद्धो अपराजितो।", | |
"मानाभिसमया बुद्धो, पतिलीनोति वुच्चती’’ति॥ अट्ठमं।", | |
"‘‘अस्समेधं पुरिसमेधं, सम्मापासं वाजपेय्यं निरग्गळं", | |
"महायञ्ञा महारम्भा", | |
"‘‘अजेळका च गावो च, विविधा यत्थ हञ्ञरे।", | |
"न तं सम्मग्गता यञ्ञं, उपयन्ति महेसिनो॥", | |
"‘‘ये", | |
"अजेळका च गावो च, विविधा नेत्थ हञ्ञरे", | |
"तञ्च सम्मग्गता यञ्ञं, उपयन्ति महेसिनो॥", | |
"‘‘एतं", | |
"एतं", | |
"यञ्ञो च विपुलो होति, पसीदन्ति च देवता’’ति॥ नवमं।", | |
"‘‘अभिसङ्खतं निरारम्भं, यञ्ञं कालेन कप्पियं।", | |
"तादिसं", | |
"‘‘विवटच्छदा", | |
"यञ्ञमेतं पसंसन्ति, बुद्धा यञ्ञस्स", | |
"‘‘यञ्ञे वा यदि वा सद्धे, हब्यं", | |
"पसन्नचित्तो यजति", | |
"‘‘सुहुतं", | |
"यञ्ञो च विपुलो होति, पसीदन्ति च देवता॥", | |
"‘‘एवं", | |
"अब्याबज्झं सुखं लोकं, पण्डितो उपपज्जती’’ति॥ दसमं।", | |
"चक्को", | |
"दोणो अपरिहानियो पतिलीनो, उज्जयो उदायिना ते दसाति॥", | |
"‘‘सङ्खाय लोकस्मिं परोपरानि,", | |
"यस्सिञ्जितं नत्थि कुहिञ्चि लोके।", | |
"सन्तो", | |
"अतारि", | |
"‘‘एकंसवचनं एकं, विभज्जवचनापरं।", | |
"ततियं पटिपुच्छेय्य, चतुत्थं पन ठापये॥", | |
"‘‘यो", | |
"चतुपञ्हस्स कुसलो, आहु भिक्खुं तथाविधं॥", | |
"‘‘दुरासदो दुप्पसहो, गम्भीरो दुप्पधंसियो।", | |
"अथो अत्थे अनत्थे च, उभयस्स होति कोविदो", | |
"‘‘अनत्थं परिवज्जेति, अत्थं गण्हाति पण्डितो।", | |
"अत्थाभिसमया धीरो, पण्डितोति पवुच्चती’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘कोधमक्खगरू भिक्खू, लाभसक्कारगारवा।", | |
"न ते धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते॥", | |
"‘‘ये", | |
"ते वे धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘कोधमक्खगरु भिक्खु, लाभसक्कारगारवो।", | |
"सुखेत्ते पूतिबीजंव, सद्धम्मे न विरूहति॥", | |
"‘‘ये च सद्धम्मगरुनो, विहंसु विहरन्ति च।", | |
"ते वे धम्मे विरूहन्ति, स्नेहान्वयमिवोसधा’’ति", | |
"‘‘गमनेन", | |
"न च अप्पत्वा लोकन्तं, दुक्खा अत्थि पमोचनं॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"लोकन्तगू वुसितब्रह्मचरियो।", | |
"लोकस्स अन्तं समितावि ञत्वा,", | |
"नासीसती", | |
"‘‘गमनेन न पत्तब्बो, लोकस्सन्तो कुदाचनं।", | |
"न च अप्पत्वा लोकन्तं, दुक्खा अत्थि पमोचनं॥", | |
"‘‘तस्मा हवे लोकविदू सुमेधो,", | |
"लोकन्तगू वुसितब्रह्मचरियो।", | |
"लोकस्स अन्तं समितावि ञत्वा,", | |
"नासीसती लोकमिमं परञ्चा’’ति॥ छट्ठं।", | |
"पारं समुद्दस्स तदाहु दूरे।", | |
"यतो च वेरोचनो अब्भुदेति,", | |
"पभङ्करो यत्थ च अत्थमेति।", | |
"ततो हवे दूरतरं वदन्ति,", | |
"सतञ्च धम्मं असतञ्च धम्मं॥", | |
"‘‘अब्यायिको होति सतं समागमो,", | |
"यावापि", | |
"खिप्पञ्हि वेति असतं समागमो,", | |
"तस्मा सतं धम्मो असब्भि आरका’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘नाभासमानं जानन्ति, मिस्सं बालेहि पण्डितं।", | |
"भासमानञ्च जानन्ति, देसेन्तं अमतं पदं॥", | |
"‘‘भासये जोतये धम्मं, पग्गण्हे इसिनं धजं।", | |
"सुभासितधजा इसयो, धम्मो हि इसिनं धजो’’ति॥ अट्ठमं।", | |
"‘‘अनिच्चे", | |
"अनत्तनि च अत्ताति, असुभे सुभसञ्ञिनो।", | |
"मिच्छादिट्ठिहता सत्ता, खित्तचित्ता विसञ्ञिनो॥", | |
"‘‘ते योगयुत्ता मारस्स, अयोगक्खेमिनो जना।", | |
"सत्ता गच्छन्ति संसारं, जातिमरणगामिनो॥", | |
"‘‘यदा च बुद्धा लोकस्मिं, उप्पज्जन्ति पभङ्करा।", | |
"ते", | |
"‘‘तेसं सुत्वान सप्पञ्ञा, सचित्तं पच्चलद्धा ते।", | |
"अनिच्चं अनिच्चतो दक्खुं, दुक्खमद्दक्खु दुक्खतो॥", | |
"‘‘अनत्तनि अनत्ताति, असुभं असुभतद्दसुं।", | |
"सम्मादिट्ठिसमादाना, सब्बं दुक्खं उपच्चगु’’न्ति", | |
"‘‘रागदोसपरिक्किट्ठा, एके समणब्राह्मणा।", | |
"अविज्जानिवुता पोसा, पियरूपाभिनन्दिनो॥", | |
"‘‘सुरं", | |
"रजतं", | |
"मिच्छाजीवेन जीवन्ति, एके समणब्राह्मणा॥", | |
"‘‘एते", | |
"येहि उपक्किलेसेहि", | |
"न तपन्ति न भासन्ति, असुद्धा सरजा मगा॥", | |
"‘‘अन्धकारेन ओनद्धा, तण्हादासा सनेत्तिका।", | |
"वड्ढेन्ति कटसिं घोरं, आदियन्ति पुनब्भव’’न्ति॥ दसमं।", | |
"समाधिपञ्हा द्वे कोधा, रोहितस्सापरे दुवे।", | |
"सुविदूरविसाखविपल्लासा, उपक्किलेसेन ते दसाति॥", | |
"‘‘महोदधिं अपरिमितं महासरं,", | |
"बहुभेरवं रतनवरानमालयं", | |
"नज्जो यथा नरगणसङ्घसेविता", | |
"पुथू", | |
"‘‘एवं नरं अन्नदपानवत्थदं", | |
"सेय्यानिसज्जत्थरणस्स दायकं।", | |
"पुञ्ञस्स धारा उपयन्ति पण्डितं,", | |
"नज्जो यथा वारिवहाव सागर’’न्ति॥ पठमं।", | |
"सीलञ्च यस्स कल्याणं, अरियकन्तं पसंसितं॥", | |
"‘‘सङ्घे पसादो यस्सत्थि, उजुभूतञ्च दस्सनं।", | |
"अदलिद्दोति तं आहु, अमोघं तस्स जीवितं॥", | |
"‘‘तस्मा सद्धञ्च सीलञ्च, पसादं धम्मदस्सनं।", | |
"अनुयुञ्जेथ मेधावी, सरं बुद्धान सासन’’न्ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘उभो च होन्ति दुस्सीला, कदरिया परिभासका।", | |
"ते", | |
"‘‘सामिको", | |
"भरिया सीलवती होति, वदञ्ञू वीतमच्छरा।", | |
"सापि देवी संवसति, छवेन पतिना सह॥", | |
"‘‘सामिको सीलवा होति, वदञ्ञू वीतमच्छरो।", | |
"भरिया होति दुस्सीला, कदरिया परिभासिका।", | |
"सापि छवा संवसति, देवेन पतिना सह॥", | |
"‘‘उभो सद्धा वदञ्ञू च, सञ्ञता धम्मजीविनो।", | |
"ते होन्ति जानिपतयो, अञ्ञमञ्ञं पियंवदा॥", | |
"‘‘अत्थासं पचुरा होन्ति, फासुकं", | |
"अमित्ता दुम्मना होन्ति, उभिन्नं समसीलिनं॥", | |
"‘‘इध धम्मं चरित्वान, समसीलब्बता उभो।", | |
"नन्दिनो देवलोकस्मिं, मोदन्ति कामकामिनो’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘उभो च होन्ति दुस्सीला, कदरिया परिभासका।", | |
"ते", | |
"‘‘सामिको", | |
"भरिया सीलवती होति, वदञ्ञू वीतमच्छरा।", | |
"सापि देवी संवसति, छवेन पतिना सह॥", | |
"‘‘सामिको सीलवा होति, वदञ्ञू वीतमच्छरो।", | |
"भरिया होति दुस्सीला, कदरिया परिभासिका।", | |
"सापि छवा संवसति, देवेन पतिना सह॥", | |
"‘‘उभो सद्धा वदञ्ञू च, सञ्ञता धम्मजीविनो।", | |
"ते होन्ति जानिपतयो, अञ्ञमञ्ञं पियंवदा॥", | |
"‘‘अत्थासं पचुरा होन्ति, फासुकं उपजायति।", | |
"अमित्ता", | |
"‘‘इध धम्मं चरित्वान, समसीलब्बता उभो।", | |
"नन्दिनो देवलोकस्मिं, मोदन्ति कामकामिनो’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘उभो सद्धा वदञ्ञू च, सञ्ञता धम्मजीविनो।", | |
"ते होन्ति जानिपतयो, अञ्ञमञ्ञं पियंवदा॥", | |
"‘‘अत्थासं पचुरा होन्ति, फासुकं उपजायति।", | |
"अमित्ता दुम्मना होन्ति, उभिन्नं समसीलिनं॥", | |
"‘‘इध", | |
"नन्दिनो देवलोकस्मिं, मोदन्ति कामकामिनो’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘उभो सद्धा वदञ्ञू च, सञ्ञता धम्मजीविनो।", | |
"ते होन्ति जानिपतयो, अञ्ञमञ्ञं पियंवदा॥", | |
"‘‘अत्थासं पचुरा होन्ति, फासुकं उपजायति।", | |
"अमित्ता दुम्मना होन्ति, उभिन्नं समसीलिनं॥", | |
"‘‘इध धम्मं चरित्वान, समसीलब्बता उभो।", | |
"नन्दिनो देवलोकस्मिं, मोदन्ति कामकामिनो’’ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘सुसङ्खतं भोजनं या ददाति,", | |
"सुचिं पणीतं", | |
"सा दक्खिणा उज्जुगतेसु दिन्ना,", | |
"चरणूपपन्नेसु महग्गतेसु।", | |
"पुञ्ञेन पुञ्ञं संसन्दमाना,", | |
"महप्फला", | |
"‘‘एतादिसं यञ्ञमनुस्सरन्ता,", | |
"ये वेदजाता विचरन्ति लोके।", | |
"विनेय्य मच्छेरमलं समूलं,", | |
"अनिन्दिता सग्गमुपेन्ति ठान’’न्ति॥ सत्तमं।", | |
"कालेन सक्कच्च ददाति भोजनं।", | |
"चत्तारि ठानानि अनुप्पवेच्छति,", | |
"आयुञ्च वण्णञ्च सुखं बलञ्च॥", | |
"‘‘सो आयुदायी वण्णदायी", | |
"दीघायु यसवा होति, यत्थ यत्थूपपज्जती’’ति॥ अट्ठमं।", | |
"कालेन सक्कच्च ददाति भोजनं।", | |
"चत्तारि ठानानि अनुप्पवेच्छति,", | |
"आयुञ्च वण्णञ्च सुखं बलञ्च॥", | |
"‘‘सो आयुदायी वण्णदायी, सुखं बलं ददो नरो।", | |
"दीघायु यसवा होति, यत्थ यत्थूपपज्जती’’ति॥ नवमं।", | |
"‘‘गिहिसामीचिपटिपदं, पटिपज्जन्ति पण्डिता।", | |
"सम्मग्गते सीलवन्ते, चीवरेन उपट्ठिता॥", | |
"पिण्डपातसयनेन, गिलानप्पच्चयेन च।", | |
"तेसं दिवा च रत्तो च, सदा पुञ्ञं पवड्ढति।", | |
"सग्गञ्च कमतिट्ठानं", | |
"द्वे पुञ्ञाभिसन्दा द्वे च, संवासा समजीविनो।", | |
"सुप्पवासा सुदत्तो च, भोजनं गिहिसामिचीति॥", | |
"‘‘भुत्ता भोगा भता भच्चा", | |
"उद्धग्गा दक्खिणा दिन्ना, अथो पञ्चबली कता।", | |
"उपट्ठिता", | |
"‘‘यदत्थं भोगं इच्छेय्य, पण्डितो घरमावसं।", | |
"सो", | |
"‘‘एतं", | |
"इधेव नं पसंसन्ति, पेच्च सग्गे पमोदती’’ति॥ पठमं।", | |
"‘‘आनण्यसुखं ञत्वान, अथो अत्थिसुखं परं।", | |
"भुञ्जं भोगसुखं मच्चो, ततो पञ्ञा विपस्सति॥", | |
"‘‘विपस्समानो जानाति, उभो भोगे सुमेधसो।", | |
"अनवज्जसुखस्सेतं, कलं नाग्घति सोळसि’’न्ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘ब्रह्माति मातापितरो, पुब्बाचरियाति वुच्चरे।", | |
"आहुनेय्या च पुत्तानं, पजाय अनुकम्पका॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"अन्नेन अथ पानेन, वत्थेन सयनेन च।", | |
"उच्छादनेन न्हापनेन, पादानं धोवनेन च॥", | |
"‘‘ताय नं पारिचरियाय, मातापितूसु पण्डिता।", | |
"इधेव नं पसंसन्ति, पेच्च सग्गे पमोदती’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘पाणातिपातो अदिन्नादानं, मुसावादो च वुच्चति।", | |
"परदारगमनञ्चापि, नप्पसंसन्ति पण्डिता’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘ये च रूपे पमाणिंसु", | |
"छन्दरागवसूपेता, नाभिजानन्ति ते जना", | |
"‘‘अज्झत्तञ्च", | |
"समन्तावरणो बालो, स वे घोसेन वुय्हति॥", | |
"‘‘अज्झत्तञ्च न जानाति, बहिद्धा च विपस्सति।", | |
"बहिद्धा फलदस्सावी, सोपि घोसेन वुय्हति॥", | |
"‘‘अज्झत्तञ्च पजानाति, बहिद्धा च विपस्सति।", | |
"विनीवरणदस्सावी, न सो घोसेन वुय्हती’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘सारत्ता", | |
"मोहेन आवुता", | |
"‘‘रागजं दोसजञ्चापि, मोहजं चापविद्दसू।", | |
"करोन्ताकुसलं कम्मं", | |
"‘‘अविज्जानिवुता पोसा, अन्धभूता अचक्खुका।", | |
"यथा धम्मा तथा सन्ता, न तस्सेवन्ति", | |
"छब्यापुत्तेहि मे मेत्तं, मेत्तं कण्हागोतमकेहि च॥", | |
"‘‘अपादकेहि मे मेत्तं, मेत्तं द्विपादकेहि", | |
"चतुप्पदेहि", | |
"‘‘मा", | |
"मा मं चतुप्पदो हिंसि, मा मं हिंसि बहुप्पदो॥", | |
"‘‘सब्बे सत्ता सब्बे पाणा, सब्बे भूता च केवला।", | |
"सब्बे भद्रानि पस्सन्तु, मा कञ्चि", | |
"‘‘अप्पमाणो", | |
"अप्पमाणो सङ्घो, पमाणवन्तानि सरीसपानि", | |
"‘‘अहिविच्छिका सतपदी, उण्णनाभी सरबू मूसिका।", | |
"कता मे रक्खा कता मे परित्ता", | |
"सोहं नमो भगवतो, नमो सत्तन्नं सम्मासम्बुद्धान’’न्ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘फलं", | |
"सक्कारो कापुरिसं हन्ति, गब्भो अस्सतरिं यथा’’ति", | |
"‘‘संवरो च पहानञ्च, भावना अनुरक्खणा।", | |
"एते पधाना चत्तारो, देसितादिच्चबन्धुना।", | |
"यो हि", | |
"‘‘गुन्नं", | |
"सब्बा ता जिम्हं गच्छन्ति, नेत्ते जिम्हं गते सति॥", | |
"‘‘एवमेवं मनुस्सेसु, यो होति सेट्ठसम्मतो।", | |
"सो चे अधम्मं चरति, पगेव इतरा पजा।", | |
"सब्बं", | |
"‘‘गुन्नं चे तरमानानं, उजुं गच्छति पुङ्गवो।", | |
"सब्बा ता उजुं गच्छन्ति, नेत्ते उजुं गते सति॥", | |
"‘‘एवमेवं", | |
"सो सचे", | |
"सब्बं", | |
"पत्तकम्मं आनण्यको", | |
"सरागअहिराजा देवदत्तो, पधानं अधम्मिकेन चाति॥", | |
"पधानं दिट्ठिसप्पुरिस, वधुका द्वे च होन्ति अग्गानि।", | |
"कुसिनारअचिन्तेय्या, दक्खिणा च वणिज्जा कम्बोजन्ति॥", | |
"पाणातिपातो च मुसा, अवण्णकोधतमोणता।", | |
"पुत्तो संयोजनञ्चेव, दिट्ठि खन्धेन ते दसाति॥", | |
"असुरो तयो समाधी, छवालातेन पञ्चमं।", | |
"रागो निसन्ति अत्तहितं, सिक्खा पोतलियेन चाति॥", | |
"द्वे वलाहा कुम्भ-उदक, रहदा द्वे होन्ति अम्बानि।", | |
"मूसिका बलीबद्दा रुक्खा, आसीविसेन ते दसाति॥", | |
"केसि जवो पतोदो च, नागो ठानेन पञ्चमं।", | |
"अप्पमादो च आरक्खो, संवेजनीयञ्च द्वे भयाति॥", | |
"अत्तानुवादऊमि च, द्वे च नाना द्वे च होन्ति।", | |
"मेत्ता द्वे च अच्छरिया, अपरा च तथा दुवेति॥", | |
"संयोजनं पटिभानो, उग्घटितञ्ञु उट्ठानं।", | |
"सावज्जो द्वे च सीलानि, निकट्ठ धम्म वादी चाति॥", | |
"आभा पभा च आलोका, ओभासा चेव पज्जोता।", | |
"द्वे काला चरिता द्वे च, होन्ति सारेन ते दसाति॥", | |
"इन्द्रियानि सद्धा पञ्ञा, सति सङ्खानपञ्चमं।", | |
"कप्पो रोगो परिहानि, भिक्खुनी सुगतेन चाति॥", | |
"संखित्तं वित्थारासुभं, द्वे खमा उभयेन च।", | |
"मोग्गल्लानो सारिपुत्तो, ससङ्खारं युगनद्धेन चाति॥", | |
"चेतना", | |
"आयाचन-राहुल-जम्बाली, निब्बानं महापदेसेनाति॥", | |
"योधा पाटिभोगसुतं, अभयं ब्राह्मणसच्चेन पञ्चमं।", | |
"उम्मग्गवस्सकारो, उपको सच्छिकिरिया च उपोसथोति॥", | |
"सोतानुगतं ठानं, भद्दिय सामुगिय वप्प साळ्हा च।", | |
"मल्लिक अत्तन्तापो, तण्हा पेमेन च दसा तेति॥", | |
"सिक्खापदञ्च अस्सद्धं, सत्तकम्मं अथो च दसकम्मं।", | |
"अट्ठङ्गिकञ्च दसमग्गं, द्वे पापधम्मा अपरे द्वेति॥", | |
"परिसा दिट्ठि अकतञ्ञुता, पाणातिपातापि द्वे मग्गा।", | |
"द्वे वोहारपथा वुत्ता, अहिरिकं दुप्पञ्ञेन चाति॥", | |
"दुच्चरितं दिट्ठि अकतञ्ञू च, पाणातिपातापि द्वे मग्गा।", | |
"द्वे वोहारपथा वुत्ता, अहिरिकं दुप्पञ्ञकविना चाति॥", | |
"संखित्त वित्थार सोणकायन,", | |
"सिक्खापदं अरियमग्गो बोज्झङ्गं।", | |
"सावज्जञ्चेव अब्याबज्झं,", | |
"समणो च सप्पुरिसानिसंसोति॥", | |
"भेदआपत्ति", | |
"पञ्ञावुद्धि बहुकारा, वोहारा चतुरो ठिताति॥", | |
"अभिञ्ञा", | |
"कुलं द्वे च आजानीया, बलं अरञ्ञकम्मुनाति॥" | |
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